बनारस का अस्सी घाट: पौराणिकता और आधुनिकता का अनूठा संगम

बनारस का अस्सी घाट: पौराणिकता और आधुनिकता का अनूठा संगम

यदि आप बनारस घूमने आ रहे हैं और किसी वजह से अस्सी घाट (Assi Ghat Varanasi) घूमने का वक्त नहीं निकाल पाते तो आप समझ लीजिए कि आपका वाराणसी घूमना अधूरा ही रह गया।

काशी यानी कि वाराणसी दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक है। वाराणसी, जो कि बनारस के नाम से भी जाना जाता है, यह अपने गंगा घाटों के लिए दुनियाभर में विख्यात है। हर साल लाखों की तादाद में पर्यटक गंगा घाटों को निहारने के लिए दुनियाभर से यहां खिंचे चले आते हैं। वैसे तो बनारस में घाटों की लाइन लगी हुई है, लेकिन इनमें से कई घाट ऐसे हैं, जो न केवल श्रद्धा की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं, बल्कि घूमने-फिरने और पिकनिक मनाने के हिसाब से भी बेहद लोकप्रिय हैं। इन्हीं में से एक है वाराणसी का अस्सी घाट (Assi Ghat Varanasi)।

वाराणसी के घाट (Varanasi Ghat) घूमने के लिए जब पर्यटक निकलते हैं, तो वे अस्सी घाट घूमना नहीं भूलते। अस्सी घाट का नाम अस्सी इसलिए पड़ा है, क्योंकि यह पवित्र पावन नदी गंगा और अस्सी के संगम पर बसा हुआ है। इसकी आकृति अर्धचंद्राकार है। इस लेख में हम आपको अस्सी घाट से जुड़ी सभी जरूरी जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं।

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अस्सी घाट के बारे में

वाराणसी का अस्सी घाट फिल्मों (Assi ghat movie) में भी कई बार देखने के लिए मिल चुका है। इनमें मोहल्ला अस्सी (Mohalla Assi), रांझणा (Ranhjaana), द लास्ट कलर (The Last Color), बनारस (Banaras) और इसक (Isaaq) आदि शामिल हैं। वास्तव में अस्सी घाट को यदि बनारस का दिल कहा जाए तो यह बिल्कुल भी गलत नहीं होगा, क्योंकि यहां बच्चों से लेकर नौजवान और बूढ़े तक समय बिताना पसंद करते हैं।

बनारस का अस्सी घाट (Banaras Assi Ghat) हमेशा ही देश-विदेश के पर्यटकों से गुलजार रहता है। स्कूल और कॉलेजों के स्टूडेंट्स भी यहां समय बिताते नजर आते हैं। सुबह के समय बड़ी संख्या में लोग यहां टहलते हुए दिख जाते हैं। शाम के दौरान भी गंगा का खूबसूरत दृश्य निहारने के लिए यहां लोग जमा होते हैं। बड़ी संख्या में लोग अस्सी घाट इसलिए भी पहुंचते हैं कि यहां की सीढ़ियों पर बैठकर वे गपशप कर सकें। शोध करने के लिए भी लोग यहां आते हैं। साथ ही पंडितों के व्याख्यान यहां गूंजते रहते हैं।

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वाराणसी के अस्सी घाट (Assi Ghat Varanasi) से तो आपका परिचय हमने करवा दिया, लेकिन आपके मन में अब यह सवाल जरूर उठ रहा होगा कि आखिर अस्सी घाट का धार्मिक महत्व क्या है और इसके इतिहास में कौन-कौन सी चीजें छिपी हुई हैं। तो चलिए बिना किसी देरी के हम आपको बताते हैं अस्सी घाट के संक्षिप्त इतिहास के बारे में।

वाराणसी के अस्सी घाट( Assi Ghat) का इतिहास

बनारस का अस्सी घाट (Banaras Assi Ghat) हिंदुओं के लिए क्या महत्व रखता है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अग्नि पुराण (Agnee Puran), पद्म पुराण (Padma Puran), कूर्म पुराण (Koorma Puran) और मत्स्य पुराण (Matsya Puran) में भी Assi Ghat के बारे में बताया गया है। अस्सी घाट ही वह जगह है, जिसके बारे में प्राचीन कथाओं में जिक्र है कि जब माता दुर्गा ने शुंभ और निशुंभ जैसे पाताल लोक के भयानक दैत्यों का तलवार से वध कर दिया था, तो उन्होंने अपनी उस तलवार को इसी जगह पर फेंक दिया था। यहां जिस जिस जगह पर माता दुर्गा की तलवार गिरी थी, उसी जगह को अस्सी नदी के क्षेत्र का आरंभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जब माता दुर्गा की तलवार गिरी तो उसी से अस्सी नदी का उद्गम हो गया था। अस्सी घाट पर गंगा और अस्सी नदियां एक-दूसरे से मिलती हैं। इस वजह से संगम होने के कारण इस जगह का धार्मिक महत्व और बढ़ जाता है।

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अस्सी घाट (Assi Ghat) का धार्मिक महत्व तो बहुत है, क्योंकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शुंभ और निशुंभ का वध करने के बाद माता दुर्गा ने यहीं पर विश्राम किया था, लेकिन समय बीतने के साथ अस्सी नदी अपने मूल स्वरूप में नहीं रह पाई और अब यह नाले के रूप में तब्दील हो गई है।

वाराणसी के घाटों (Varanasi Ghat) में बेहद प्रमुख स्थान रखने वाले अस्सी घाट के बारे में एक और पौराणिक कथा भी प्रचलित है कि भगवान शिव के ही एक रूप भगवान रूद्र ने गुस्से में आकर इसी जगह पर 80 दैत्यों का वध कर दिया था और इसी वजह से यह जगह अस्सी के नाम से विख्यात हो गया। यह भी कहा जाता है कि इन राक्षसों का विनाश करने के बाद भगवान रुद्र को बड़ा अफसोस हुआ था और इस वजह से उन्होंने हमेशा के लिए हिंसा का रास्ता छोड़ दिया। साथ ही उन्होंने यह भी घोषणा कर दी थी कि भविष्य में काशी एक ऐसी जगह के रूप में विख्यात होगी, जहां कि हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं होगा और यहां रहने वाले अहिंसा के उपासक होंगे।

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अस्सी घाट(Assi Ghat) का महत्व

वाराणसी का अस्सी घाट फिल्मों (Assi ghat movie) में बहुत बार दिख चुका है, तो जाहिर सी बात है कि यहां जरूर कुछ ऐसा होगा, जिसकी वजह से फिल्म निर्माता यहां फिल्मों की शूटिंग करने के लिए दौड़े चले आते हैं। अस्सी घाट की सबसे खास बात तो यह है कि यदि आप यहां खड़े हो जाएं तो आपको बनारस के सभी घाट आसानी से दिख जाते हैं। उसी तरीके से जब यहां शाम के वक्त आरती होती है, तो देखने और सुनने वालों का मन खुशी से झूम उठता है। तब यहां एक अलौकिक एहसास होता है। सुबह के समय बड़ी संख्या में लोग यहां योगासन भी करते दिख जाते हैं।

अस्सी घाट पर भक्त अस्‍सींगमेश्‍वारा मंदिर में भी दर्शन करना नहीं भूलते हैं। अस्‍सींगमेश्‍वारा दरअसल वे देवता हैं, जिन्हें कि अस्सी और गंगा नदियों के संगम का भगवान माना गया है। इसके अलावा अस्सी घाट पर भगवान शिव का एक शिवलिंग पीपल के पेड़ के नीचे मौजूद है, जिसकी भक्त पूजा-अर्चना करते हैं और इस पर पवित्र गंगाजल भी चढ़ाते हैं। अस्सी घाट का धार्मिक महत्व इस लिहाज से भी है कि यही वह घाट है, जहां पर संत कवि गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की थी। अस्सी घाट पर लक्ष्मी नारायण मंदिर बना हुआ है, जो कि नागर शैली में अपनी अनोखी स्थापत्य कला के लिए जाना जाता है। इतिहास बताता है कि 19वीं सदी में बनारस के महाराज द्वारा अस्सी घाट का निर्माण करवाया गया था।

वाराणसी के अस्सी घाट (Varanasi Assi Ghat) का भव्य स्वरूप तब देखते ही बनता है, जब मकर संक्रांति, सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण और प्रबोधिनी एकादशी जैसे त्योहारों के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का रैला गंगा में डुबकी लगाने के लिए देशभर से यहां पहुंचने लगता है। अस्सी घाट युवाओं को भी बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित करता है। लोग यहां शांति का अनुभव करने के लिए भी आते हैं।

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अस्सी घाट कैसे पहुंचें (How to reach Assi Ghat)?

वाराणसी के अस्सी घाट के निकट होटलों (Hotel near Assi Ghat Varanasi) की कोई कमी नहीं है। यहां आप आसानी से ठहर सकते हैं। इसलिए अस्सी घाट घूमने की योजना को आप अपनी वाराणसी घूमने की प्लानिंग में शामिल कर सकते हैं। यदि आप अस्सी घाट पहुंचना चाहते हैं और आप किसी दूसरे शहर से यहां आ रहे हैं, तो आपको वाराणसी रेलवे स्टेशन या फिर बनारस रेलवे स्टेशन पर उतरना होगा। यहां से आप ऑटो या कैब के जरिए दुर्गाकुंड पहुंच सकते हैं। दुर्गाकुंड से अस्सी घाट की दूरी लगभग 400 मीटर की ही है। सड़क मार्ग से भी वाराणसी पहुंचना बहुत ही आसान है, क्योंकि NH-2 के माध्यम से यह देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।

वहीं यदि आप हवाई यात्रा करके वाराणसी आ रहे हैं, तो इसके लिए आपको बाबतपुर स्थित लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरना होगा, जहां से कैब के जरिये आप अस्सी घाट तक पहुंच सकते हैं। वाराणसी के अस्सी घाट में मौजूद होटलों (Hotel in Assi Ghat Varanasi) में रहने की भी अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हैं।

अस्सी घाट के निकट कई अच्छे रेस्टोरेंट (Restaurants near Assi Ghat) मौजूद हैं, जहां कि आप बनारस के व्यंजनों का लुत्फ उठा सकते हैं। इन रेस्टोरेंट के अलावा भी आप बनारस के स्ट्रीट फूड का भी जायका यहां घूम-फिर कर ले सकते हैं। अस्सी घाट पर नौका यात्रा का आनंद भी आपको जरूर लेना चाहिए।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

रंगभरी एकादशी का आयोजन वाराणसी के किस घाट पर होता है?

वाराणसी के अस्सी घाट (Varanasi Assi Ghat) पर हर साल रंगभरी एकादशी आयोजित होती है।

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अस्सी घाट पर सुबह और शाम की आरती किस वक्त होती है?

बनारस के अस्सी घाट (Banaras Assi Ghat) पर सुबह की आरती 5:00 से 6:00 बजे के दौरान एवं शाम को करीब 7:00 बजे होती है।

अस्सी घाट घूमने के लिए कब आना चाहिए?

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वैसे तो Assi Ghat घूमने के लिए आप पूरे साल यहां आ सकते हैं, लेकिन ठंड के मौसम में यहां घूमने में एक अलग ही आनंद मिलता है।

टीम वाराणसी मिरर

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