रंगभरी एकादशी: काशी में भगवान शिव की रंगभरी यात्रा

रंगभरी एकादशी: काशी में भगवान शिव की रंगभरी यात्रा

रंगभरी एकादशी (Rangbhari Ekadashi) का काशी के लिए विशेष महत्व है, क्योंकि काशी की पहचान भगवान शिव से ही है और रंगभरी एकादशी भगवान शिव के स्वागत में ही मनाई जाती है। यह वह दिन है, जब वाराणसी की सड़कों पर गुलाल बरसते हैं और वाराणसी में होली (Holi in Varanasi) के समारोह की शुरुआत भी हो जाती है। यह दिन इसी उपलक्ष्य में मनाया जाता है कि भगवान शिव इसी दिन माता पार्वती को विदा कराकर ले जाने के लिए शादी के बाद पहली बार बनारस आए थे।

Rangbhari Ekadashi 2022 date यानी कि रंगभरी एकादशी 2022 की तारीख की बात करें तो इस बार 13 मार्च 2022 यानी कि रविवार के दिन एकादशी तिथि की शुरुआत सुबह 8:40 बजे हो जाएगी और एकादशी की तिथि 14 मार्च 2022 यानी कि सोमवार के दिन सुबह 10:30 बजे तक जारी रहेगी।

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रंगभरी एकादशी का इतिहास (History of Rangbhari Ekadashi)

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक जब माता सती ने आत्मदाह कर लिया था, तो उसके बाद भगवान शिव बड़े ही क्रुद्ध हो गए थे और वे बड़े दुखी भी हुए थे। यही वजह थी कि इसके बाद उन्होंने चिर साधना शुरू कर दी थी। उनकी यह साधना तब तक जारी रही, जब तक कि माता पार्वती के रूप में माता सती ने फिर से जन्म नहीं ले लिया और भगवान शिव का उनसे विवाह नहीं हुआ। माता पार्वती से विवाह हो जाने के बाद भगवान शिव जिस दिन उन्हें विदा कराकर ले जाने के लिए यानी कि गौने की रस्म करवाने के लिए पहली बार वाराणसी पहुंचे थे, उसी दिन से रंगभरी एकादशी मनाने की शुरुआत हुई थी। इस दिन भगवान शिव के स्वागत-सत्कार में पूरी काशी उमड़ पड़ी थी और गुलाल एवं फूलों की पत्तियां बरसा कर भगवान शिव का काशी नगरी में भव्य अभिनंदन किया गया था। तभी से भगवान शिव के पहली बार अपने ससुराल आने की खुशी में काशी में रंगभरी एकादशी मनाने की परंपरा शुरू हुई, जो सदियों बाद आज तक निभाई जा रही है।

रंगभरी एकादशी का महत्व (Significance of Rangbhari Ekadashi)

रंगभरी एकादशी (Rangbhari Ekadashi) काशी यानी कि वाराणसी के लोगों के लिए बड़ी मायने रखती है, क्योंकि वाराणसी में होली (Holi in Varanasi) के उत्सव का आरंभ इसी दिन से हो जाता है। माता पार्वती के गौने की वजह से इस दिन का वाराणसी के लोगों के लिए खास महत्व है और इस दिन व्रत करके और उत्सव मनाकर लोग अपने जीवन में न केवल अपने घरों में खुशियां और समृद्धि के आगमन को निमंत्रण देते हैं, बल्कि पूरे उत्साह और धूमधाम के साथ इसे मना कर भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद भी प्राप्त करते हैं। खासकर शादीशुदा जोड़े रंगभरी एकादशी को विशेष रुप से मनाते हैं, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि पूरी श्रद्धा के साथ इस त्योहार को मनाने से उनकी जिंदगी प्यार से भर जाती है और भगवान शिव एवं माता पार्वती की कृपा हमेशा उन पर बनी रहती है।

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यूं मनाई जाती है रंगभरी एकादशी

रंगभरी एकादशी (Rangbhari Ekadashi) को यदि काशी की सांस्कृतिक पहचान कहा जाए, तो यह बिल्कुल भी गलत नहीं होगा। रंगभरी एकादशी के उत्सव की शुरुआत काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत के घर से होती है और भगवान शिव की रजत यानी चांदी वाली मूर्ति को त्योहार के एक दिन पहले शाम को महंत के घर पहुंचा दिया जाता है और रात भर भगवान शिव यही महंत के घर में विराजमान रहते हैं। इसके बाद रंगभरी एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियों का पुजारियों द्वारा दूध से अभिषेक किया जाता है। इनकी मूर्तियों का पंचामृत से भी अभिषेक होता है और इस तरह से रुद्राभिषेक का कार्यक्रम चलता है। इसके बाद फूलों और आभूषणों से दोनों मूर्तियों का श्रृंगार किया जाता है और इस दौरान परंपरागत गीत भी महिलाओं द्वारा गाए जाते हैं।

जैसे-जैसे दोपहर का वक्त आता है, बारात निकालने की तैयारी पूरी हो जाती है। एक पालकी पर भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियों को सजा कर रखा जाता है और इस बारात की शुरुआत महंत के घर से होती है, जो कि काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचकर समाप्त होती है। इस पालकी को भगवान शिव के भक्त उठाते हैं, जिन्हें कि बम के नाम से हम जानते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचने से पहले यह पालकी शहर के कई हिस्सों में घूमती है और इस दौरान पूरे रास्ते में भक्तगण गीत गाते हैं। भगवान शिव और माता पार्वती पर लोग खूब अबीर-गुलाल उड़ाते हैं।

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भक्तगण खुद भी रंगों में रंग जाते हैं। नगाड़े बजाते हैं। हर हर महादेव का जयघोष करते हैं। वे डमरू बजाते हैं। तरह-तरह के वाद्य यंत्र बजाते हैं। इनकी धुनों पर भक्त खूब थिरकते और झूमते हैं। इस दौरान पूरा वातावरण खुशी से सराबोर हो जाता है। हर हर महादेव के जयकारे से काशी नगरी गूंज उठती है। कुंवारी महिलाएं इस दौरान खासकर भगवान शिव को रंग लगाने की कोशिश करती हैं और वे उन्हीं के जैसा वर प्राप्त करने का आशीर्वाद भी उनसे मांगती हैं। वाराणसी में होली की यह न केवल धमाकेदार, बल्कि बेहद पवित्र शुरुआत होती है, जिसका साक्षी बनने के लिए केवल अपने देश से ही नहीं, बल्कि दुनिया के कोने-कोने से श्रद्धालु वाराणसी पहुंचते हैं। यह उत्सव धुलंडी तक जारी रहता है।

रंगभरी और आमलकी एकादशी क्या एक ही हैं?

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक रंगभरी एकादशी के दिन ही बेहद हितकारी आंवले के वृक्ष को भगवान विष्णु ने पैदा करके देवताओं को इसकी पूजा करने एवं लोगों के हित में इसका उपयोग करने के लिए कहा था। इसके बाद भगवान ब्रह्मा भी भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न हुए थे और उन्होंने इस संसार की रचना की थी। यही वजह है कि रंगभरी एकादशी आमलकी एकादशी(Aamlaki Ekadashi) भी कही जाती है और इस दिन आंवला के वृक्ष की पूजा करने की भी परंपरा सदियों से चली आ रही है।

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वाराणसी में होली (Holi in Varanasi)

मसान होली भी वाराणसी में होली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो कि महाश्मशान घाट पर चिता की भस्म से खेली जाती है। इस दौरान भक्तगण अबीर और गुलाल के अलावा चिता की भस्म भी एक-दूसरे को लगाते हैं और होली खेलते हुए हर-हर महादेव के जयकारे से पूरे घाट को गुंजा देते हैं। मसान होली की यह परंपरा काशी में लगभग 350 वर्षों से चली आ रही है।

चलते-चलते

रंगभरी एकादशी और Rangbhari Ekadashi 2022 date की भी जानकारी इस लेख में आपको मिल चुकी है। तो देर किस बात की, आप भी आइए वाराणसी और रंग जाइए रंगभरी एकादशी के रंग में। यकीन मानिए ये पल आपकी जिंदगीभर की यादों का हिस्सा बनकर रह जाएंगे।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

वाराणसी में होली खेलना कितना सुरक्षित है?

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वैसे तो वाराणसी में होली खेलना पूरी तरह से सुरक्षित है, लेकिन यदि आप पहली बार यहां होली खेलने आ रहे हैं तो आपको परिचितों के साथ ही होली खेलनी चाहिए।

रंगभरी एकादशी को निहारने की सबसे अच्छी जगह कौन सी है?

काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास रहकर आप रंगभरी एकादशी का पूरा लुत्फ उठा सकते हैं।

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वाराणसी कैसे पहुंचें?

आप किसी भी शहर से वाराणसी के लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए उड़ान भर सकते हैं। साथ ही आप वाराणसी के तीन रेलवे स्टेशन बनारस, वाराणसी और वाराणसी सिटी भी अलग-अलग शहरों से पहुंच सकते हैं।

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टीम वाराणसी मिरर

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